Home > Author > Paul Brunton
121 " मनुष्य का अपने शारीरिक अस्तित्व के अलावा एक सूक्ष्म शरीर भी होता है। इस सूक्ष्म शरीर के भीतर क्रिया-कलापों के केंद्र होते हैं जो शारीरिक अंगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन केंद्रों की मदद से मनुष्य अदृश्य शक्तियों को पहचान सकता है क्योंकि ये केंद्र ऊर्जान्वित होते हैं और मनुष्य को मानसिक और आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। "
― Paul Brunton , A Search In Secret India: The classic work on seeking a guru
122 " The remembrance is a necessary preparation for the second exercise, in which you try to obtain an immediate identification with the Overself. Just as an actor identifies with the role he plays on the stage, you act think and live during the daily life “as if” you were the Overself. This exercise is not merely intellectual but also includes feeling and intuitive action. It is an act of creative imagination in which by turning directly to playing the part of the Overself you make it possible for its grace to come more and more into your life. (23-5-2) "
― Paul Brunton , The Short Path to Enlightenment: Instructions for Immediate Awakening
123 " Ibn ul Farid, the thirteenth-century adept in practical and theoretical mysticism, lived in Cairo. He attained to permanent union with his real self (the Beloved) by getting rid of the dualistic illusion of two selves. "It is like a woman possessed by a spirit," he said. By casting off his self-existence he had found the Beloved to be his real self. "Naught save otherness marred this high estate of thine," the Beloved said to him, "and if thou wilt efface thyself thy claim to have achieved it will be established indeed!" (Among Sufis otherness is equivalent to thinking of one's self as something other than God.) "
― Paul Brunton , Advanced Contemplation: The Peace Within You (The Notebooks of Paul Brunton, #15)
124 " Often the aspirant is not ready to start these two exercises until after one or several glimpses of the Overself. "
125 " Do not be satisfied with the self-conscious spirituality which comes from forced growth and harsh unnatural asceticisms, or from egocentrically watching personal progress. "
126 " The “remembrance exercise” consists of trying to recall the glimpse of the Overself, not only during the set meditation periods but also in each moment during the whole working span of the day—in the same way as a mother who has lost her child can not let go of the thought of it no matter what she is doing outwardly, or as a lover who constantly holds the vivid image of the beloved in the back of his mind. In a similar way, you keep the memory of the Overself alive during this exercise and let it shine in the background while you go about your daily work. But "
127 " बोले गए शब्दों को अँगुलियों पर गिन सकते हैं! महर्षि, बोलने की अपेक्षा परेशान व्यक्ति को चुपचाप देखते रहते हैं। धीरे-धीरे उसका रोना-चीख़ना बंद हो जाता है। वह दो घंटे बाद अधिक शांत और मज़बूत व्यक्ति बनकर लौटता है। मैं देख चुका हूँ कि यह महर्षि द्वारा किसी परेशान व्यक्ति के उपचार का बहुत बढ़िया तरीक़ा है। यह एक रहस्यमय दूरसंवेदी पद्धति है, जिसे शायद आने वाले समय में विज्ञान समझ सकेगा। "
128 " स्वयं से “मैं कौन हूँ?” यह प्रश्न लगातार पूछते रहो। अपने व्यक्तित्व का विश्लेषण करते रहो। देखो, कि “मैं” विचार कहाँ से आरंभ होता है। लागातार ध्यान का अभ्यास करते रहो। अपने ध्यान को भीतर की ओर केंद्रित करो। एक दिन विचारों का चक्र धीमा हो जाएगा और फिर भीतर से अंतर्प्रेरणा उत्पन्न होगी। उस प्रेरणा का अनुसरण करो। अपने विचारों को रुक जाने दो और आख़िरकार, तुम्हें अपना लक्ष्य मिल जाएगा। "
129 " समाधि की दशा में मुझे महर्षि की भविष्यवाणी की सच्चाई का पता चल रहा है। विचारों की तरंगें स्वाभाविक रूप से थम रही हैं। तर्कबुद्धि का काम करना शून्यता में विलीन होने लगा है। मैं जिस विचित्र सनसनी को महसूस कर रहा था अब वह मुझे जकड़ने लगी है। समय थमता सा लग रहा है और मेरा तेज़ी से गहरा होता ध्यान अज्ञात में रमने लगा है। मैं अपनी इंद्रियों से अब और न तो सुन पा रहा हूँ, न महसूस कर पा रहा हूँ और न ही कुछ याद कर पा रहा हूँ। मैं समझ रहा हूँ कि किसी भी क्षण मैं विषयों से परे खड़ा दिखूँगा, दुनिया के रहस्य की बाह्य सीमा को पार कर जाऊँगा… "
130 " अंततः यह होता है। बुझे हुए दीपक की लौ की तरह विचार ग़ायब हो चुके हैं। बुद्ध अपने वास्तविक आधार पर चली गई है, जो चेतना को बिना बाधा के काम करने दे रही है। मुझे लगता है कि जिस बात को लेकर कुछ समय से मैं संदेह कर रहा था और महर्षि ने जिसकी पूरे विश्वास के साथ पुष्टि की थी, वह यह थी कि मन का उत्कर्ष उत्कृष्ट स्रोत में होता है। दिमाग़ पूरी तरह निलंबित अवस्था में चला गया है, जैसे कि यह गहरी निद्रा में हो, तो भी यहाँ चेतना का ज़रा भी क्षरण नहीं हो रहा है। मैं पूरी तरह शांत और जागरूक बना रहता हूँ कि ‘मैं कौन हूँ’ और ‘क्या हो रहा है।’ तो भी मेरी जागरूकता की समझ, जो व्यक्तित्व के संकुचित दायरे से निकली थी, अब बेहद उदात्त और सर्वव्यापक हो चुकी है। आत्मबोध अब भी बना हुआ है पर यह बदला हुआ, प्रकाशमान आत्मबोध है। पहले वह जिस क्षुद्र व्यक्तित्व “मैं” का बोध था वह उससे कहीं कुछ गंभीर, कुछ दैवीय है जो कि चेतना में जग रहा है और “मेरा” बन रहा है। इसी के साथ पूर्ण स्वतंत्रता का आश्चर्यजनक बोध रहा है। करघे के शटल की भाँति हमेशा इधर से उधर चलायमान चित्त की वृत्ति गति के चंगुल से छूटकर स्वच्छंद हो रही है। "
131 " अंतरिक्ष में मंचित किए जा रहे इस रहस्यमय विश्व नाटक का अर्थ मेरे मन में बिजली की भाँति कौंध रहा है और मैं अपने अस्तित्व के मूल बिंदु पर आ पहुँचा हूँ। “मैं,” नवीन “मैं” पवित्र आनंद की गोद में आराम कर रहा हूँ। मैं सूफियों के मयख़ाने में प्याला पी-पीकर मतवाला हो रहा हूँ। कल की कड़वी स्मृतियाँ और आगामी समय की व्यग्रता से पूर्ण चिंताएँ एकदम ग़ायब हो रही हैं। मैं दैवीय स्वतंत्रता और अवर्णनीय परमसुख हासिल कर चुका हूँ। मेरी बाँहों ने पूरी सृष्टि का पूर्ण सहानुभूति के साथ आलिंगन कर लिया है। मुझे गंभीर तौर पर समझ में आ रहा है कि यह केवल सबको क्षमा करना नहीं, बल्कि प्रेम करना है। मेरा हृदय आनंद से बल्लियों उछल रहा है। "
132 " उनके चेहरे पर वह दुर्लभ तत्व भी है, जिसे फ़्रांसीसी लोग अपनी भाषा में ‘सुसंस्कृत’ कहते हैं। उनकी भाव-भंगिमा बहुत विनम्र है। उनकी बड़ी, काली आँखें असाधारण रूप से शांत व सुंदर हैं। उनकी नाक, छोटी सीधी और सुगठित है। उनकी ठुड्डी पर थोड़ी-सी दाढ़ी है और उनका मुँह किसी का भी ध्यान आकर्षित कर सकता है। उनके जैसा चेहरा मध्यकालीन युग के एक ईसाई संत जैसा है, "
133 " उनकी आँखें, स्वप्नद्रष्टा की आँखें हैं। परंतु मुझे ऐसा महसूस होता है कि उन आँखों के पीछे सपनों के अतिरिक्त और बहुत कुछ छिपा है। "
134 " महर्षि के आसपास मौजूद आध्यात्मिक वातावरण और दर्शनशास्त्र से प्रेरित उनकी तार्किक आत्म-विवेचना ही उस पुराने मंदिर में मिल सकती है। उनके मुँह पर कभी “भगवान” शब्द भी नहीं आता। वह प्रतिभा के अंधकारपूर्ण एवं विवादास्पद क्षेत्र से भी दूर रहते हैं क्योंकि यही वह क्षेत्र है जहाँ अति-आशावादी यात्राओं की दुर्घटना होती है। वह लोगों के सामने केवल आत्म-विश्लेषण का सीधा-सा मार्ग रखते हैं जिसका प्राचीन या आधुनिक सिद्धांत और आस्था के बिना अभ्यास किया जा सकता है। इसी मार्ग पर चलकर मनुष्य को सचमुच आत्मज्ञान प्राप्त होता है। "
135 " उनके लगातार दोहराए गए निर्देशों के बाद, मैं उनके निराकार मानसिक चित्र को देखने का प्रयास कर रहा हूँ। वही उनकी वास्तविक और सच्ची प्रकृति है, उनकी आत्मा है। मुझे यह जानकर आश्चर्य हो रहा है कि मेरा प्रयास तुरंत ही सफल हो जाता है और उसके बाद वह चित्र अचानक मेरी आँखों से ओझल हो जाता है। मैं महर्षि की उपस्थिति को शक्तिशाली ढंग से महसूस कर सकता हूँ। "
136 " The secret is to remember the Overself, to turn the battle over to IT. Then, what he is unable to conquer by himself, will be easily conquered for him by the higher power. "
137 " मैं अपनी सोचने की क्षमता से, जिसपर मुझे अब तक बहुत गर्व रहा है, छुटकारा चाहता हूँ क्योंकि मैं समझ चुका हूँ कि मैं अनजाने में इस सोच का बंधक बनकर जिया हूँ। मेरे भीतर अचानक बुद्ध से बाहर निकलकर और अपने सच्चे स्वरूप में रहने की इच्छा जाग्रत हो रही है। मैं विचारों से भी गहरे किसी अन्य स्थान में डुबकी लगाना चाहता हूँ। मैं देखना चाहता हूँ कि मस्तिष्क के बंधन से मुक्त होने पर कैसा लगता है। परंतु मुझे यह सब सचेत और जाग्रत अवस्था में करना है! "
138 " भगवान के मन में मानवजाति के प्रति प्रेम के अतिरिक्त और कुछ नहीं है! "
139 " In the early stages of enlightenment, the aspirant is overwhelmed by his discovery that God is within himself. It stirs his intensest feelings and excites his deepest thoughts. But, though he does not know it, those very feelings and thoughts still form part of his ego, albeit the highest part. So he still separates his being into two—self and Overself. Only in the later stages does he find that God not only is within himself but is himself. "
140 " विचारों की उत्पत्ति के स्थान को खोजने का प्रयास करो, अपने वास्तविक स्वरूप को देखो और फिर विचारों की श्रृंखला स्वतः रुक जाएगी। "