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141 " Although it comes only for a few minutes in most cases, its bloom endures and "
― Paul Brunton , A Hermit in the Himalayas: The Journal of a Lonely Exile
142 " धैर्यवान मनुष्य की आँखें, गहराई से देखती हैं। ईश्वर नियत समय पर ही किसी मनुष्य को अपना साधन बनाकर चीज़ों को ठीक करते हैं। "
― Paul Brunton , A Search In Secret India: The classic work on seeking a guru
143 " The world is always with us, but only those on the Short Path recognize the miracle that it is. In moments of exaltation, uplift, awe, or satisfaction—derived from music, art, poetry, landscape, or otherwise—thousands of people have received a Glimpse; but only those on the Short Path recognize it for what it really is. "
― Paul Brunton , The Short Path to Enlightenment: Instructions for Immediate Awakening
144 " Disraeli’s perceptive remark that: ‘The European talks of progress because by the aid of a few scientific discoveries he has established a society which has mistaken comfort for civilisation.’ The "
― Paul Brunton ,
145 " This internal exploration is well worth while. For there is something within the mind of man and beast, something that is neither intellect nor feeling, but deeper than both, to which the name of intuition, may fitly be given. When science can truly explain why a horse will take its drunken rider or driver for miles through the dark and find its own way home; why field-mice seal up their holes before the cold weather comes; why sheep move away to the lee side of a mountain before severe storms; when it can tell us what warns the tortoise to retire to rest and refuge before every shower of rain; and when it can really explain who guides a vulture many miles distant to the dead body of an animal, we may then learn that intuition is sometimes a better guide than intellect. "
146 " उनके अनुभव-जनित आध्यात्मिक विचारों को सुना। मैंने उनसे तर्क करने का दुर्बल प्रयास भी किया, लेकिन उनकी पवित्र उपस्थिति के समक्ष मैं अधिक तक नहीं टिक सका। मैं बार-बार उनके पास जाता था क्योंकि मैं उस निर्धन किंतु विनम्र व्यक्ति से दूर नहीं रह पाता था। एक दिन रामकृष्ण ने मज़ाक़ में मुझसे कहा कि एक मोर को चार बजे अफ़ीम खिलाई गई थी। वह अगले दिन ठीक उसी समय पर फिर आ गया। वह अफ़ीम के नशे से प्रभावित होकर आया था।’ ‘उनकी बात सांकेतिक रूप से बिलकुल सच थी। मुझे जो आनंद रामकृष्ण की उपस्थिति में मिलता था, मैंने वह आनंद पहले कभी अनुभव नहीं किया था। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि मैं उनके पास बार-बार आता था और इस तरह धीरे-धीरे मैं उनके अंतरंग शिष्यों में शामिल हो गया। एक दिन उन्होंने मुझसे कहा कि मैं तुम्हारी आँखें, भाव और चेहरा देखकर बता सकता हूँ कि तुम एक योगी हो। अपना काम इसी तरह करते रहो लेकिन अपना ध्यान सदा ईश्वर में रखना। अपनी पत्नी, बच्चों और माता-पिता के साथ रहो और उनकी पूरी देखभाल करो। कछुआ जब पानी में तैरता हुआ जाता है तो भी उसका ध्यान तट पर रखे अपने अंडों में ही लगा रहता है। इसी तरह संसार के समस्त कार्य करते रहो, किंतु अपना ध्यान सदा ईश्वर में लगाए रखो। "
147 " The indigo sky is strewn with stars, which cluster in countless thousands close over our heads. The rising moon is a thin crescent disc of silver light. On our left the evening fireflies are making the compound grove radiant, and above them the plumed heads of tall palms stand out in black silhouette against the sky. My adventure in self-metamorphosis is over … "
148 " उनके अनुभव-जनित आध्यात्मिक विचारों को सुना। मैंने उनसे तर्क करने का दुर्बल प्रयास भी किया, लेकिन उनकी पवित्र उपस्थिति के समक्ष मैं अधिक तक नहीं टिक सका। मैं बार-बार उनके पास जाता था क्योंकि मैं उस निर्धन किंतु विनम्र व्यक्ति से दूर नहीं रह पाता था। एक दिन रामकृष्ण ने मज़ाक़ में मुझसे कहा कि एक मोर को चार बजे अफ़ीम खिलाई गई थी। वह अगले दिन ठीक उसी समय पर फिर आ गया। वह अफ़ीम के नशे से प्रभावित होकर आया था।’ ‘उनकी बात सांकेतिक रूप से बिलकुल सच थी। मुझे जो आनंद रामकृष्ण की उपस्थिति में मिलता था, मैंने वह आनंद पहले कभी अनुभव नहीं किया था। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि मैं उनके पास बार-बार आता था और इस तरह धीरे-धीरे मैं उनके अंतरंग शिष्यों में शामिल हो गया। एक दिन उन्होंने मुझसे कहा कि मैं तुम्हारी आँखें, भाव और चेहरा देखकर बता सकता हूँ कि तुम एक योगी हो। अपना काम इसी तरह करते रहो लेकिन अपना ध्यान सदा ईश्वर में रखना। अपनी पत्नी, बच्चों और माता-पिता के साथ रहो और उनकी पूरी देखभाल करो। कछुआ जब पानी में तैरता हुआ जाता है तो भी उसका ध्यान तट पर रखे अपने अंडों में ही लगा रहता है। इसी तरह संसार के समस्त कार्य करते रहो, किंतु अपना ध्यान सदा ईश्वर में लगाए रखो।’ ‘यही "
149 " प्रार्थना मनुष्य का अंतिम सहारा है। यह व्यक्ति के पास उपलब्ध अंतिम संसाधन है। प्रार्थना मनुष्य की उस समय सहायता करती है जब उसकी बुद्धि उसका साथ नहीं देती। "
150 " The Overself is not a goal to be attained but a realization of what already is. It is the inalienable possession of all conscious beings and not of a mere few. No effort is needed to get hold of the Overself, but every effort is needed to get rid of the many impediments to its recognition "
151 " पिछली रात, एक भरे पूरे बाज़ार में, जहाँ कोई यूरोपीय व्यक्ति अथवा पुलिस वाला नहीं था, किसी ने पीछे से आकर मुझे मारने की धमकी दी थी। मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ तो उन युवा कट्टरपंथी लोगों का झुंड अंधकार में कहीं ग़ायब हो गया है। मुझे उस झुंड को देखकर उन लोगों पर दया आ रही है। राजनीति ने, जो सबको सबकुछ देने का वादा करती है, कुछ लोगों को अपना शिकार बना लिया है! "
152 " we are now as divine as we ever shall be—but we must wake up from illusion and see this truth. "
153 " उससे आग्रह करता हूँ कि वह किसी तरह की परेशानी न उठाए। परंतु वह अपने निश्चय पर अडिग है। मैं उसे निराश नहीं करना चाहता इसलिए उसका आग्रह स्वीकार कर लेता हूँ। ‘यह बहुत बुरी बात है कि कोई अतिथि मेरे घर आए और मैं उसे भोजन न करा सकूँ,’ यह कहते हुए वह मुझे छौंके हुए चावल देता है। मैं खिड़की से बाहर देख रहा हूँ। चंद्रमा का मंद प्रकाश अंदर आ रहा है। उसे देखते हुए मैं गाँव के अशिक्षित किसानों के सीधे व सरल स्वभाव और उनकी दयालु प्रवृत्ति के विषय में सोच रहा हूँ। किसी कॉलेज की शिक्षा आदि शहरों में दिखनेवाले चारित्रिक पतन की पूर्ति नहीं कर सकती! "
154 " संभवतः उनके जीवन में कभी संदेह के क्षण उत्पन्न ही नहीं होते। उनका विश्वास है कि ईश्वर है, और बस बात यहाँ ख़त्म हो जाती है! उन्हें देखकर ऐसा नहीं लगता कि वे उन अंधेरों से परिचित हैं जिनसे होकर मनुष्य को गुज़रना पड़ता है। ऐसा समय, जब मनुष्य को संसार जंगल के समान संघर्षमय प्रतीत होता है, जब मनुष्य के जीवन से ईश्वर का आभास ओझल हो जाता है, जब मनुष्य को अपना अस्तित्व ब्रह्मांड के इस छोटे से अंश पर, जिसे हम पृथ्वी कहते हैं, नगण्य लगने लगता है। हम "
155 " नियमित रूप से ध्यान का अभ्यास कीजिए। इस संसार की श्रेष्ठ बातों के विषय में अपने हृदय में प्रेमपूर्वक विचार कीजिए। अपनी आत्मा के विषय में विचार कीजिए, जो आपको यहाँ तक लाई है। इसका अभ्यास करने के लिए सुबह उठने के बाद का समय श्रेष्ठ होता है। इसके बाद संध्याकाल इसके लिए उचित समय है। इन दोनों समय पर आस-पास का वातावरण अपेक्षाकृत अधिक शांत होता है और ध्यान में कम व्यवधान उत्पन होते हैं। "
156 " If the world stands bewildered and confused in the face of its troubles, it is partly because we Westerners have made a God of activity; we have yet to learn how to be, as we have already learnt how to do. "
157 " सत्य अवश्य विद्यमान है और उसे खोजा जा सकता है! "
158 " आपने जो अभी दिखाया, वह योग का परिणाम नहीं है। यह वास्तव में सौर विज्ञान का नतीजा है। योग से इच्छाशक्ति और मस्तिष्क को केंद्रित करने की क्षमता का विकास होता है। परंतु सौर विज्ञान के लिए इन सबकी आवश्यकता नहीं है। सौर विज्ञान केवल कुछ रहस्यों का संग्रह है और इसके लिए किसी विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती। इसे किसी भी अन्य विज्ञान की तरह ही पढ़ा और समझा जाता है। "
159 " सूर्य की किरणों में जीवन प्रदान करने वाले तत्व मौजूद होते हैं और यदि आप उन तत्वों को चुनकर उन्हें अलग करने का रहस्य जानते हैं तो आप इस तरह के चमत्कार कर सकते हैं। सूर्य की किरणों में विशेष शक्तियाँ होती हैं और आप अभ्यास द्वारा उन्हें नियंत्रित करना सीख सकते हैं। "
160 " मनुष्य के मस्तिष्क में एक बहुत छोटा छिद्र होता है* उस छिद्र के भीतर आत्मा का निवास होता है। इस छिद्र के ऊपर एक प्रकार का वाल्व होता है, जो छिद्र की रक्षा भी करता है। मनुष्य की रीढ़ की हड्डी के तल में प्राणवायु प्रवाहित होती है जो हमें दिखाई नहीं देती और जिसके विषय में मैंने आपको पहले भी कई बार बताया है। प्राणवायु का प्रवाह निरंतर घटने के कारण ही शरीर बूढ़ा होता है और इस प्रवाह के तेज़ होने से शरीर को नया जीवन मिलता है। मनुष्य जब अपने ऊपर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त कर लेता है तो उसे थोड़े-से अभ्यास द्वारा प्राणवायु के प्रवाह पर भी नियंत्रण हो जाता है। केवल कुछ पारंगत योगियों को ही इसका ज्ञान है। मनुष्य जब इतना तैयार हो जाता है कि प्राणवायु को अपनी रीढ़ की हड्डी में रोक सकता है, तो वह मस्तिष्क के उस छिद्र पर ध्यान केंद्रित करने का प्रयास करता है। परंतु उसकी सुरक्षा करने वाले वाल्व को खोलने के लिए एक योग्य गुरु द्वारा प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है, "