" उनके अनुभव-जनित आध्यात्मिक विचारों को सुना। मैंने उनसे तर्क करने का दुर्बल प्रयास भी किया, लेकिन उनकी पवित्र उपस्थिति के समक्ष मैं अधिक तक नहीं टिक सका। मैं बार-बार उनके पास जाता था क्योंकि मैं उस निर्धन किंतु विनम्र व्यक्ति से दूर नहीं रह पाता था। एक दिन रामकृष्ण ने मज़ाक़ में मुझसे कहा कि एक मोर को चार बजे अफ़ीम खिलाई गई थी। वह अगले दिन ठीक उसी समय पर फिर आ गया। वह अफ़ीम के नशे से प्रभावित होकर आया था।’ ‘उनकी बात सांकेतिक रूप से बिलकुल सच थी। मुझे जो आनंद रामकृष्ण की उपस्थिति में मिलता था, मैंने वह आनंद पहले कभी अनुभव नहीं किया था। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि मैं उनके पास बार-बार आता था और इस तरह धीरे-धीरे मैं उनके अंतरंग शिष्यों में शामिल हो गया। एक दिन उन्होंने मुझसे कहा कि मैं तुम्हारी आँखें, भाव और चेहरा देखकर बता सकता हूँ कि तुम एक योगी हो। अपना काम इसी तरह करते रहो लेकिन अपना ध्यान सदा ईश्वर में रखना। अपनी पत्नी, बच्चों और माता-पिता के साथ रहो और उनकी पूरी देखभाल करो। कछुआ जब पानी में तैरता हुआ जाता है तो भी उसका ध्यान तट पर रखे अपने अंडों में ही लगा रहता है। इसी तरह संसार के समस्त कार्य करते रहो, किंतु अपना ध्यान सदा ईश्वर में लगाए रखो।’ ‘यही "
― Paul Brunton , A Search In Secret India: The classic work on seeking a guru