Home > Author > Paul Brunton
161 " यह गुरु और शिशु की क्या बात चल रही है? यह केवल दृष्टिकोण का अंतर है। जिस व्यक्ति ने स्वयं को जान लिया, उसके लिए न कोई गुरु है और न शिष्य! ऐसा व्यक्ति सबको समान दृष्टि से देखता है। "
― Paul Brunton , A Search In Secret India: The classic work on seeking a guru
162 " आप चाहते हैं कि मैं आपको आत्म-तत्व के विषय में समझाऊँ। मैं क्या कहूँ? यह वही है, जिसके भीतर से “मैं” का भाव उठता है और जिसमें इस “मैं” को एक दिन लुप्त हो जाना है। "
163 " निश्चित तौर पर! हम अपने भीतर जा सकते हैं। हम अपने उस अंतिम विचार “मैं” के धीरे-धीरे समाप्त हो जाने तक भीतर जा सकते हैं। "
164 " अपने भीतर के सत्य को वास्तविक प्रकृति को समझने के बाद ही मनुष्य सही अर्थां में विद्वान और विवेकशील बनता है। "
165 " हमारी भौतिक इंद्रियों से परे जो दुनिया मौजूद है, उसमें अच्छी और बुरी दोनों तरह की आत्माएँ मौजूद हैं। मैं केवल अच्छी आत्माओं की सहायता लेने का प्रयास करता हूँ। इनमें से कुछ लोग उस अवस्था को पार कर चुके हैं जिसे संसार, मृत्यु कहता है। परंतु मेरे अधिकतर सहायक “जिन्न” हैं, जो अध्यात्म जगत के ऐसे निवासी हैं जिन्होंने कभी मनुष्य शरीर धारण नहीं किया। "
166 " O, when I am safe in my sylvan home, I tread on the pride of Greece and Rome; And when I am stretched beneath the pines, Where the evening star so holy shines, I laugh at the lore and the pride of man, At the sophist schools and the learned clan; For what are they all, in their high conceit, When man in the bush with God may meet. —Ralph Waldo Emerson. "
― Paul Brunton , A Hermit in the Himalayas: The Journal of a Lonely Exile
167 " उसे अचानक इस तरह अपने सामने देखकर मैं हैरान हूँ। वह साँप भी मुझे अजीब ढंग से देख रहा है। उसने अपना फन उठा रखा है और उसकी ख़तरनाक आँखें मुझे लगातार घूर रही हैं। आख़िरकार मैं स्वयं को संभालकर पीछे हट जाता हूँ। मैं एक मोटी छड़ से उसे मारने की सोच रहा हूँ कि तभी मुझे वह नवागंतुक व्यक्ति अपनी ओर आता दिखाई पड़ता है। मैं उसे अचानक शांत हो जाता हूँ। वह पास आकर मेरी परिस्थिति को भाँपता है और फिर मेरे कमरे के भीतर चला जाता है। मैं उसे चिल्लाकर चेतावनी देता हूँ लेकिन वह मेरी बात पर ध्यान नहीं देता। मैं बहुत परेशान हूँ क्योंकि उसके पास कोई हथियार नहीं है और उसने अपने दोनों हाथ साँप की ओर उठा दिए हैं। साँप बार-बार अपनी जीभ बाहर निकाल रहा है लेकिन वह उस व्यक्ति पर हमला नहीं करता है। उसी समय मेरे चिल्लाने से कुछ और लोग घरों से बाहर निकल आते हैं। उनके वहाँ पहुँचने से पहले, आगंतुक साँप के बहुत नज़दीक चला गया है। उसे देखकर साँप सिर झुका लेता है और अपनी पूँछ हिलाने लगता है! वह अपने विषैले दाँत अंदर कर लेता लेता है और अन्य लोगों के पहुँचने से पहले ही वह हमारी आँखों के सामने से कुटिया से बाहर निकलकर जंगल में चला जाता है। "
168 " वहाँ फैली शांति मेरे विचारों में घुल रही है और वहाँ का सौंदर्य मेरे हृदय को छू रहा है। हमें जो क्षण सौभाग्य से देखने को मिले हैं, उन्हें कौन भूल सकता है? इस बात पर विश्वास करना मुश्किल है कि जीवन के क्रूर चेहरे के पीछे इतनी सुंदर और कृपालु शक्ति छिपी हो सकती है! शांति के कुछ ऐसे पल महसूस करके हमें साधारण दिन के समय बिताए घंटों पर दुःख होता है। ये शांत पल, अंधकार से भरे ख़ालीपन में से उल्कापिंड की भाँति बाहर निकलते हैं और हमारे भीतर आशा का क्षणिक आभास छोड़कर दृष्टि से ओझल हो जाते हैं। "
169 " थियोसोफ़िकल सोसाइटी की संस्थापक रूस की एक महिला हेलेना पेत्रेव्ना ब्लावात्स्की ने, लगभग 50 वर्ष पूर्व कुछ ऐसे ही कारनामे दिखाए थे। उसकी सोसाइटी के चुनिंदा सदस्यों ने उनकी एजेंसी के माध्यम से कुछ लंबे संदेश प्राप्त किए थे। उन्होंने काग़ज़ पर दर्शन संबंधी कुछ प्रश्न लिखे थे और उन्हीं काग़ज़ों पर उनके उत्तर उभर आए थे। यह बड़ी विचित्र बात है कि मैडम ब्लावात्स्की, तातार और तिब्बत दोनों से नज़दीकी से परिचित थीं और इन दोनों जगहों पर मार्को पोलो के साथ समान घटनाएँ घटीं। इसके बावजूद मैडम ब्लावात्स्की ने, महमूद बेग की तरह, यह दावा नहीं किया कि उन्होंने रहस्यमय आत्माओं को नियंत्रण में किया हुआ है। "
170 " मुझे विश्वास है कि हज़रत बाबाजान के भीतर निश्चित रूप से कोई गहन मनोवैज्ञानिक उपलब्धि मौजूद है। मेरे भीतर सहज रूप से उनके प्रति आदर का भाव जाग्रत हो रहा है। मुझे महसूस होता है कि उनके साथ संपर्क से मेरे सामान्य विचार बदल गए हैं। मेरे भीतर उस रहस्यमय तत्व का अवर्णनीय भाव जाग्रत हो गया है, जो वैज्ञानिकों द्वारा की गई सब तरह की खोजों और अनुसंधानों के बावजूद, हमारे सांसारिक जीवन के चारों ओर घूमता है। "
171 " हमारे पश्चिम के बुद्धिमान लोग अपनी चतुराई के लिए पहचाने जाते हैं और उनका आदर किया जाता है। इसके बावजूद उन्होंने इस बात को स्वीकार किया है कि वह लोग जीवन के पीछे छिपे सत्य पर अधिक प्रकाश नहीं डाल सकते। ऐसा कहा जाता है कि आपके देश में ऐसे कुछ लोग हैं जो ऐसी बातों पर रोशनी डाल सकते हैं "
172 " यदि मनुष्य के पास आध्यात्मिक ज्ञान और शक्ति है तो उसे लोगों की तलाश करने की आवश्यकता नहीं पड़ती, बल्कि लोग स्वयं उसके पास पहुँच जाते हैं। स्वयं को पूरी तरह पहचानने का प्रयास करो। इसके बाद किसी अन्य निर्देश की आवश्यकता नहीं होगी। बस, तुम्हें इतना ही करना है! "
173 " समय है जब योगियों को फ़ैक्ट्री में, ऑफ़िस में, और यहाँ तक कि स्कूलों में भी जाकर आध्यात्मिक शिक्षा का ज्ञान देना चाहिए। परंतु यह ज्ञान केवल प्रवचन या प्रचार-प्रसार द्वारा नहीं, बल्कि प्रेरणापूर्ण कार्यों द्वारा दिया जाना चाहिए। उनके अनुसार स्वर्ग का मार्ग, रोज़मर्रा की गतिविधियों और शोरगुल के बीच से होकर ही निकलता है। "
174 " मैं मौनी बाबा के उत्तर को अभी ठीक से समझ भी नहीं पाता हूँ, कि मुझे अपने शरीर में एक विचित्र प्रवाह महसूस होता है। वह प्रवाह मेरी रीढ़ की हड्डी से होता हुआ मेरी गर्दन में, और फिर मेरे सिर तक पहुँच जाता है। अचानक मेरी इच्छा-शक्ति अपने चरम पर पहुँच गई है। मैं स्वयं पर विजय प्राप्त करने की इच्छा के प्रति सजग हो गया हूँ। मुझे भीतर से ऐसा भी महसूस होता है कि मेरा आदर्श और कुछ नहीं बल्कि मेरे अपने ही भीतर की आवाज़ है जो मुझे परम आनंद प्रदान कर सकती है। मुझे अपने भीतर मौनी बाबा से आता एक विचित्र प्रवाह महसूस हो रहा है। "
175 " आप ज्योतिष विज्ञान को तब तक सही ढंग से नहीं समझ सकते जब तक आप इस सिद्धांत को स्वीकार न करें कि व्यक्ति का बार-बार जन्म होता है और उसकी नियति प्रत्येक जन्म में उसका पीछा करती है। यदि वह अपने दुष्कर्मों के परिणाम से किसी जन्म में बच निकलता है तो वह उसे अगले जन्म में अवश्य दंडित करते हैं और यदि उसे किसी जन्म में अपने अच्छे कर्मों का फल नहीं मिल पाता तो उसे वह फल अगले जन्म में अवश्य मिलता है। मनुष्य की आत्मा का पूर्ण परिष्कार हो जाने तक कर्म का यह सिद्धांत नियमित रूप से चलता रहता है। लोगों के भाग्य में होने वाले परिवर्तन हमें संयोग मात्र प्रतीत होते हैं। इंसाफ़-पसंद ईश्वर ऐसा कैसे होने दे सकता है? नहीं! हमें विश्वास है कि किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर उसका स्वभाव, उसकी इच्छाएँ, उसके विचार फिर से एक नवजात शिशु के रूप में नए शरीर में प्रवेश करते हैं। हमें अपने पिछले जन्म में किए अच्छे और बुरे कर्मों का फल अपने वर्तमान अथवा आने वाले जन्मों में अवश्य मिलता है। भाग्य को समझने का यही तरीक़ा है। "