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" अंततः यह होता है। बुझे हुए दीपक की लौ की तरह विचार ग़ायब हो चुके हैं। बुद्ध अपने वास्तविक आधार पर चली गई है, जो चेतना को बिना बाधा के काम करने दे रही है। मुझे लगता है कि जिस बात को लेकर कुछ समय से मैं संदेह कर रहा था और महर्षि ने जिसकी पूरे विश्वास के साथ पुष्टि की थी, वह यह थी कि मन का उत्कर्ष उत्कृष्ट स्रोत में होता है। दिमाग़ पूरी तरह निलंबित अवस्था में चला गया है, जैसे कि यह गहरी निद्रा में हो, तो भी यहाँ चेतना का ज़रा भी क्षरण नहीं हो रहा है। मैं पूरी तरह शांत और जागरूक बना रहता हूँ कि ‘मैं कौन हूँ’ और ‘क्या हो रहा है।’ तो भी मेरी जागरूकता की समझ, जो व्यक्तित्व के संकुचित दायरे से निकली थी, अब बेहद उदात्त और सर्वव्यापक हो चुकी है। आत्मबोध अब भी बना हुआ है पर यह बदला हुआ, प्रकाशमान आत्मबोध है। पहले वह जिस क्षुद्र व्यक्तित्व “मैं” का बोध था वह उससे कहीं कुछ गंभीर, कुछ दैवीय है जो कि चेतना में जग रहा है और “मेरा” बन रहा है। इसी के साथ पूर्ण स्वतंत्रता का आश्चर्यजनक बोध रहा है। करघे के शटल की भाँति हमेशा इधर से उधर चलायमान चित्त की वृत्ति गति के चंगुल से छूटकर स्वच्छंद हो रही है। "

Paul Brunton , A Search In Secret India: The classic work on seeking a guru


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Paul Brunton quote : अंततः यह होता है। बुझे हुए दीपक की लौ की तरह विचार ग़ायब हो चुके हैं। बुद्ध अपने वास्तविक आधार पर चली गई है, जो चेतना को बिना बाधा के काम करने दे रही है। मुझे लगता है कि जिस बात को लेकर कुछ समय से मैं संदेह कर रहा था और महर्षि ने जिसकी पूरे विश्वास के साथ पुष्टि की थी, वह यह थी कि मन का उत्कर्ष उत्कृष्ट स्रोत में होता है। दिमाग़ पूरी तरह निलंबित अवस्था में चला गया है, जैसे कि यह गहरी निद्रा में हो, तो भी यहाँ चेतना का ज़रा भी क्षरण नहीं हो रहा है। मैं पूरी तरह शांत और जागरूक बना रहता हूँ कि ‘मैं कौन हूँ’ और ‘क्या हो रहा है।’ तो भी मेरी जागरूकता की समझ, जो व्यक्तित्व के संकुचित दायरे से निकली थी, अब बेहद उदात्त और सर्वव्यापक हो चुकी है। आत्मबोध अब भी बना हुआ है पर यह बदला हुआ, प्रकाशमान आत्मबोध है। पहले वह जिस क्षुद्र व्यक्तित्व “मैं” का बोध था वह उससे कहीं कुछ गंभीर, कुछ दैवीय है जो कि चेतना में जग रहा है और “मेरा” बन रहा है। इसी के साथ पूर्ण स्वतंत्रता का आश्चर्यजनक बोध रहा है। करघे के शटल की भाँति हमेशा इधर से उधर चलायमान चित्त की वृत्ति गति के चंगुल से छूटकर स्वच्छंद हो रही है।