Home > Author > सुरेन्द्र मोहन पाठक
21 " कोई अनुष्ठान, कोई यज्ञ, कोई जप-तप प्रारब्ध को नहीं बदल सकता। फेट इज इनएवीटेबल। नियति अटल है। "
― सुरेन्द्र मोहन पाठक , पूरे चाँद की रात
22 " जब दांत थे तो दाने नहीं थे, आज दाने है तो दांत नहीं है! "
― सुरेन्द्र मोहन पाठक , शक की सुई
23 " लाख जौहर हों आदमी में, आदमियत नहीं तो कुछ भी नहीं। "
― सुरेन्द्र मोहन पाठक , कोलाबा कांस्पीरेसी
24 " काबिलियत दिखाने का मौका ना मिले तो काबिलियत किसी काम की नहीं। "
― सुरेन्द्र मोहन पाठक , दो गज कफन
25 " मानव जीवन परहित अभिलाषी ही होना चाहिये। "
― सुरेन्द्र मोहन पाठक , डबल गेम
26 " नहीं "
― सुरेन्द्र मोहन पाठक , क्रिस्टल लॉज (Crystal Lodge)
27 " राजा रामचन्द्र तरन्नुम में कौशल्या माता को खबर करते हैं : “राज के बदले माता मुझ को हो गया हुक्म फकीरी का, खड़ा मुन्तज़िर हे माता मैं तेरे हुक्म अखीरी का ।” जवाब में कौशल्या माता विलाप के से स्वर में तरन्नुम में उचरती है : “बैठी थी मैं आस लगाये, इन बातों की आन गुमान नहीं, सुन कर तेरी बातें बेटा, रही बदन में जान नहीं ।” तब पंजाबी रिफ्यूजी जो रामायण पेश करते थे, वो उपरोक्त की और उनके अपने वर्शन की खिचड़ी होता था जो रोते हँसते दर्शकों को खूब आनन्दित करता था । "
― सुरेन्द्र मोहन पाठक , न बैरी न कोई बेगाना: Volume 1
28 " तुम "
― सुरेन्द्र मोहन पाठक , Surender Mohan Pathak Thriller Box Set
29 " अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता क्या है? अगर आप किसी को भड़काने, आन्दोलित करने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता निरर्थक है। —सलमान रुश्दी "
― सुरेन्द्र मोहन पाठक , हम नहीं चंगे…बुरा न कोय- आत्मकथा ‘लेखकीय जीवन के सबसे हलचल वाले दिनों की कथा |’ [Hum Nahi Change... Bura Na koy]
30 " any form or by any means, electronic, mechanical, "
― सुरेन्द्र मोहन पाठक , Conman (Hindi)
31 " बात याद रखो । जिसको मोह माया ज्यादा सताती है, वो ज्यादा संतप्त होता है । जितनी बड़ी आशा को कोई आसरा देता है, उतनी ही बड़ी निराशा पल्ले पड़ने की सम्भावना होती है । जो जितना ऊंचा उड़ता है उतनी ही ऊंचाई से गिरने का उसे खतरा होता है । इसलिये इच्छाओं पर, आशा तृष्णाओं पर अंकुश रखना चाहिये, उन्हें आपे से बाहर नहीं होने देना चाहिये "
― सुरेन्द्र मोहन पाठक , शेरसवारी
32 " आइकानिक लेखक जिक्र के काबिल होते हैं, पढ़ने के काबिल नहीं होते इसलिए ट्रेड से बाहर हो जाते हैं। "
33 " अखबार "
― सुरेन्द्र मोहन पाठक , मौत का फरमान
34 " इससे ज्यादा गर्म ड्रिंक्स के शौकीन हो” - वह शरारतभरे स्वर में बोली - “तो तुम्हें शेखावत साहब के आने तक इन्तजार करना पड़ेगा ।” “जी नहीं ।” - मैं बोला - “इस वक्त यही ठीक है । मुझे इतनी ज्यादा गर्म चीजों का शौक नहीं कि मुंह ही जल जाये और” - मैं एक क्षण ठिठका और बोला - “कलेजा भी ।” वह हंसी । मैंने कॉफी का कप उठाया और बड़े अर्थपूर्ण ढंग से उसे देखता हुआ बोला - "