" राजा रामचन्द्र तरन्नुम में कौशल्या माता को खबर करते हैं : “राज के बदले माता मुझ को हो गया हुक्म फकीरी का, खड़ा मुन्तज़िर हे माता मैं तेरे हुक्म अखीरी का ।” जवाब में कौशल्या माता विलाप के से स्वर में तरन्नुम में उचरती है : “बैठी थी मैं आस लगाये, इन बातों की आन गुमान नहीं, सुन कर तेरी बातें बेटा, रही बदन में जान नहीं ।” तब पंजाबी रिफ्यूजी जो रामायण पेश करते थे, वो उपरोक्त की और उनके अपने वर्शन की खिचड़ी होता था जो रोते हँसते दर्शकों को खूब आनन्दित करता था । "
― सुरेन्द्र मोहन पाठक , न बैरी न कोई बेगाना: Volume 1