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121 " प्रत्येक प्राणी को अपने हमजोलियों के साथ, हंसने-बोलने की जो एक नैसर्गिक तृष्णा होती है, "
― Munshi Premchand , Nirmala
122 " सुख में आदमी का धरम कुछ और होता है, दुख में कुछ और। सुख में आदमी दान देता है, मगर दु:ख में भीख तक माँगता है। उस समय आदमी का यही धरम हो जाता है। "
― Munshi Premchand , गोदान [Godaan]
123 " जन-शिक्षा का उद्देश्य जितने कम ख़र्च में पत्रों से पूरा हो सकता है, और किसी तरह नहीं हो सकता। "
124 " वही आग जो मोटी लकड़ी को स्पर्श भी नहीं कर सकती, फूल को जला कर भस्म कर देती है. "
― Munshi Premchand , पुत्रप्रेम
125 " हिंसक पशु भी आदमी को गाफिल पाकर ही चोट करते हैं। "
126 " हमारे शिक्षालयों में नर्मी को घुसने ही नहीं दिया जाता। "
― Munshi Premchand , Karmabhumi
127 " एक इनके ठीक हो जाने से तो देश से अन्याय मिटा जाता नहीं, फिर क्यों न इस दान को स्वीकार कर लूँ। मैं अपने आदर्श से गिर गया हूँ ज़रूर; लेकिन इतने पर भी राय साहब ने दग़ा की, तो मैं भी शठता पर उतर आऊँगा। "
128 " हमारे शिक्षालयों में नर्मी को घुसने ही नहीं दिया जाता। वहां स्थायी रूप से मार्शल-लॉ का व्यवहार होता है। कचहरी में पैसे का राज है, हमारे स्कूलों में भी पैसे का राज है, उससे कहीं कठोर, कहीं निर्दय। देर में आइए तो जुर्माना न आइए तो जुर्माना सबक न याद हो तो जुर्माना किताबें न खरीद सकिए तो जुर्माना कोई अपराध हो जाए तो जुर्माना शिक्षालय क्या है, जुर्मानालय है। यही हमारी पश्चिमी शिक्षा का आदर्श है, जिसकी तारीफों के पुल बांधे जाते हैं। "
129 " माँ को अपनी औलाद ईमान से भी ज्यादा प्यारी होती है और उसका रुष्ट होना उचित था मगर इन धमकियों के क्या माने? "
― Munshi Premchand , गुप्त धन
130 " मेरा सिद्धांत है कि मनुष्य को अपनी मेहनत की कमाई खानी चाहिए । यही प्राकृतिक नियम है । किसी को यह अधिकार नहीं है कि वह दूसरों की कमाई को अपनी जीवन-वृत्ति का आधार बनाए "
― Munshi Premchand , प्रेमाश्रम [Premashram]
131 " जो अपनी जान खपाते हैं, उनका हक़ उन लोगों से ज़्यादा है, जो केवल रुपया लगाते हैं। "
132 " दबा हुआ पुरुषार्थ ही स्त्रीत्व है। "
133 " महत्वाकांक्षा आखों पर परदा डाल देती है। "
― Munshi Premchand , बेटी का धन
134 " उनकी आँखों में वह शून्यता थी, जो विक्षिप्तता का लक्षण है। "
135 " आप नहीं जानते मिस्टर मेहता, मैंने अपने सिद्धांतों की कितनी हत्या की है। कितनी रिश्वतें दी "
136 " दौलत से आदमी को जो सम्मान मिलता है, वह उसका सम्मान नहीं, उसकी दौलत का सम्मान है। "
137 " शिष्टता उसके लिए दुनिया को ठगने का एक साधन थी, मन का संस्कार नहीं। "
138 " स्नेह-कोमल स्वर में बोली -- तो तुम इतना दिल छोटा क्यों करते हो? धन के लिए, जो सारे पाप की जड़ है? उस धन से हमें क्या सुख था? सबेरे से आधी रात तक एक-न-एक झंझट -- आत्मा का सर्वनाश! लड़के तुमसे बात करने को तरस जाते थे, तुम्हें संबंधियों को पत्र लिखने तक की फ़ुरसत न मिलती थी। क्या बड़ी इज़्ज़त थी? हाँ, थी; क्योंकि दुनिया आज तक धन की पूजा करती चली आयी है। उसे तुमसे कोई प्रयोजन नहीं। जब तक तुम्हारे पास लक्ष्मी है, तुम्हारे सामने पूँछ हिलायेगी। कल उतनी ही भक्ति से दूसरों के द्वार पर सिजदे करेगी। तुम्हारी तरफ़ ताकेगी भी नहीं। "
139 " पुरुषार्थी लोग दूसरों की सम्पत्ति पर मुंह नहीं फैलाते। अपने बाहुबल का भरोसा रखते हैं। "
140 " लेकिन आप यह भी जानते हैं, कवि को संसार में कभी सुख नहीं मिलता? "