Home > Author > Dushyant Kumar
1 " एक जंगल है तेरी आँखों मेंमैं जहाँ राह भूल जाता हूँ तू किसी रेल-सी गुज़रती हैमैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ "
― Dushyant Kumar
2 " जा तेरे स्वप्न बड़े हों।भावना की गोद से उतर करजल्द पृथ्वी पर चलना सीखें।चाँद तारों सी अप्राप्य ऊचाँइयों के लियेरूठना मचलना सीखें।हँसेंमुस्कुराएँगाएँ।हर दीये की रोशनी देखकर ललचायेंउँगली जलाएँ।अपने पाँव पर खड़े हों।जा तेरे स्वप्न बड़े हों। "
3 " सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए। "
― Dushyant Kumar , साये में धूप [Saaye mein Dhoop]
4 " हाथों में अंगारों को लिए सोच रहा था,कोई मुझे अंगारों की तासीर बताए "
5 " मरना लगा रहेगा यहाँ जी तो लीजिए "
6 " एक जंगल है तेरी आँखों में, मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ। तू किसी रेल-सी गुज़रती है, मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ। "
7 " पूरा घर अँधियारा, गुमसुम साए हैंकमरे के कोने पास खिसक आए हैं "
8 " आज सड़कों पर लिखे हैं सैंकड़ों नारे न देखघर अँधेरा देख तू आकाश के तारे न देख एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआआज अपने बाजुओं को देख पतवारें न देख अब यक़ीनन ठोस है धरती हक़ीक़त की तरहयह हक़ीक़त देख, लेकिन ख़ौफ़ के मारे न देख वे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझेकट चुके जो हाथ ,उन हाथों में तलवारें न देख दिल को बहला ले इजाज़त है मगर इतना न उड़रोज़ सपने देख, लेकिन इस क़दर प्यारे न देख ये धुँधलका है नज़र का,तू महज़ मायूस हैरोज़नों को देख,दीवारों में दीवारें न देख राख, कितनी राख है चारों तरफ़ बिखरी हुईराख में चिंगारियाँ ही देख, अँगारे न देख. "
9 " रह—रह आँखों में चुभती है पथ की निर्जन दोपहरीआगे और बढ़ें तो शायद दृश्य सुहाने आएँगेमेले में भटके होते तो कोई घर पहुँचा जाताहम घर में भटके हैं कैसे ठौर-ठिकाने आएँगे "
10 " आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख,घ्रर अंधेरा देख तू आकाश के तारे न देख।एक दरिया है यहां पर दूर तक फैला हुआ,आज अपने बाज़ुओं को देख पतवारें न देख।अब यकीनन ठोस है धरती हकीकत की तरह,यह हक़ीक़त देख लेकिन खौफ़ के मारे न देख।वे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझे,कट चुके जो हाथ उन हाथों में तलवारें न देख।ये धुंधलका है नज़र का तू महज़ मायूस है,रोजनों को देख दीवारों में दीवारें न देख।राख कितनी राख है, चारों तरफ बिखरी हुई, राख में चिनगारियां ही देख अंगारे न देख। "
11 " एक खँडहर के हृदय-सी,एक जंगली फूल-सीआदमी की पीर गूँगी ही सही, गाती तो है "