Home > Work > ठंडा गोश्त और अन्य कहानियाँ
1 " मगर आप थे कि ‘परों’ पर पानी ही नहीं लेते थे। "
― Saadat Hasan Manto , ठंडा गोश्त और अन्य कहानियाँ
2 " वह सख़्त हैरान थी कि लोग अमीर और ग़रीब क्यों होते हैं, जबकि हर इन्सान एक ही तरह माँ के पेट से पैदा होता "
3 " आह, बड़ा होने पर इनका भी यही काम होगा...फिर मुझे छः जानों का डर लगा रहेगा... "
4 " दर्दनाक आवाज़ में कहने लगी, “आह, तो उन बोसों का जो जिस्म को राहत बख़्शते हैं...और माँ की मुहब्बत, गीत, तबस्सुम (मुस्कुराहट), हँसी और नाच का एक ही अंजाम है...क़ब्र...आह मेरे ख़ुदा! "
5 " लाश के पहलू में दो बच्चे सो रहे थे—उसने महसूस किया, लाश के सीने में एक आह कुछ कहने को रुकी हुई है और पथराई हुई आँखें झोंपड़ी की ख़स्ता छत को चीरकर अँधेरे आसमान की तरफ़ टकटकी लगाये देख रही हैं, जैसे उसे कोई पैग़ाम देना हो। "
6 " काश कि उसके जीवन की पुस्तक उसकी अपनी जेब में होती, जिसे खोल कर वह तुरन्त इसका उत्तर पा लेता। परन्तु "
7 " वह तो ऐसी किश्ती की तरह थी जिसका न बादबान (ऊपरी कपड़ा) हो न कोई पतवार और बीच मँझधार में आ फँसी है। "