Home > Author > Nikhil Sachan
1 " अच्छा! ठीक तो फिर मैं एक कविता सुनाता हूँ। अगर तुम कविता सुनते हुए हँस दिए तो सात दिन लगातार नहाना पड़ेगा। बोलो मंजूर”, मैंने शरारत से कहा।“कविता सुन के कौन हँसता है। बंडल-बोर होती है कविता”, वह बोला।“ठीक है फिर सुनो। बच्चू”, मैंने कहा।“हल्लम हल्लम हौदा, हाथी चल्लम चल्लमहम बैठे हाथी पर, हाथी हल्लम हल्लमलंबी लंबी सूँड़ फटाफट फट्टर फट्टरलंबे लंबे दाँत खटाखट खट्टर खट्टरभारी भारी मूँड़ मटकता झम्मम झम्ममहल्लम हल्लम हौदा, हाथी चल्लम चल्लमपर्वत जैसी देह थुलथुली थल्लल थल्ललहालर हालर देह हिले जब हाथी चल्लल। "
― Nikhil Sachan , UP 65
2 " जब मैं तीसरी क्लास में था तब एक दफा माठ सा’ब ने पूछा था, बच्चों तुम बड़े होकर क्या बनना चाहते हो, अधिकतर ने पायलट कहा, कुछ ने एस्ट्रोनॉट तो कुछ ने डॉक्टर। इंजीनियर किसी ने नहीं कहा और फिर भी आज अधिकतर लोग इंजीनियर ही हैं। इस बार जब इंटर्नशिप की छुट्टी पर कानपुर गया था तो माठ सा’ब मिले और बोले, बेटा हम भी मास्टर कहाँ बनना चाहते थे! इसी भटकाव का नाम ही जिंदगी है। जिंदगी में आप जाना कहीं और ही चाहते हैं, लेकिन पहुँच वहीं जाते हैं जहाँ सब जा रहे हैं, जहाँ पहुँचने के लिए सड़क अच्छी हो, रास्ते में जगमग बत्ती-उत्ती लगी हो, साइन बोर्ड लगे हों, हर मील पर मील के पत्थर हों, ताकि पता चलता रहे कि हम कितना चल लिए और कितना चलना बाकी रह गया”, मैंने कहा। "
3 " प्रोफेसर के लेक्चर डीकोड करना, मुलायम सिंह यादव के भाषण को डीकोड करने से कहीं अधिक जटिल हो रहा था। "
4 " यदि आप इंजीनियर हैं तभी आप इस सुख को समझ पाएँगे, कि जब आपका पक्का दोस्त बिगड़ जाता है, तो दुनिया में उससे अधिक सुखद कुछ भी नहीं है। "
5 " (मैं आपको बता दूँ कि मैं कानपुर का रहने वाला हूँ। गाली के नाम पर मैंने अधिक-से-अधिक किसी को ‘चूतिया’ ही कहा होगा क्योंकि कानपुर वह जगह हैं जहाँ ‘चूतिया’ को गाली नहीं मानते। वहाँ गालियाँ जबान का आभूषण होती हैं। पर्सनालिटी का वजन होती हैं और आपके दिल में सामने वाले के लिए मुहब्बत कितनी गहरी है, इस बात का सबसे वाजिब पैमाना होती हैं)। "
6 " वो पीटने में क़तई भरोसा नहीं करते थे और ‘कूटने’ की फ़िलॉसफ़ी के अनुयायी थे। "
― Nikhil Sachan , ज़िन्दगी आइस पाइस [Zindagi Aais Pais]
7 " वाह जी वाह! एक गुलजार साहब हुए हैं। और एक हुए हैं अमित कुमार पांडे। इतिहास में आज तक का सबसे दर्द भरा ब्रेक अप लेटर गुलजार साहब ने लिखा— ‘मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है’। और उसके बाद पांडे जी ने लिखा – ‘मेरा सात सौ पिचहत्तर रुपिया, तुम्हारे पास पड़ा है, वो भिजवा दो, मेरा वो सामान लौटा दो’, मैंने कहा। "