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" अच्छा! ठीक तो फिर मैं एक कविता सुनाता हूँ। अगर तुम कविता सुनते हुए हँस दिए तो सात दिन लगातार नहाना पड़ेगा। बोलो मंजूर”, मैंने शरारत से कहा।

“कविता सुन के कौन हँसता है। बंडल-बोर होती है कविता”, वह बोला।
“ठीक है फिर सुनो। बच्चू”, मैंने कहा।
“हल्लम हल्लम हौदा, हाथी चल्लम चल्लम
हम बैठे हाथी पर, हाथी हल्लम हल्लम
लंबी लंबी सूँड़ फटाफट फट्‌टर फट्‌टर
लंबे लंबे दाँत खटाखट खट्‌टर खट्‌टर
भारी भारी मूँड़ मटकता झम्मम झम्मम
हल्लम हल्लम हौदा, हाथी चल्लम चल्लम
पर्वत जैसी देह थुलथुली थल्लल थल्लल
हालर हालर देह हिले जब हाथी चल्लल। "

Nikhil Sachan , UP 65


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Nikhil Sachan quote : अच्छा! ठीक तो फिर मैं एक कविता सुनाता हूँ। अगर तुम कविता सुनते हुए हँस दिए तो सात दिन लगातार नहाना पड़ेगा। बोलो मंजूर”, मैंने शरारत से कहा।<br /><br />“कविता सुन के कौन हँसता है। बंडल-बोर होती है कविता”, वह बोला।<br />“ठीक है फिर सुनो। बच्चू”, मैंने कहा।<br />“हल्लम हल्लम हौदा, हाथी चल्लम चल्लम<br />हम बैठे हाथी पर, हाथी हल्लम हल्लम<br />लंबी लंबी सूँड़ फटाफट फट्‌टर फट्‌टर<br />लंबे लंबे दाँत खटाखट खट्‌टर खट्‌टर<br />भारी भारी मूँड़ मटकता झम्मम झम्मम<br />हल्लम हल्लम हौदा, हाथी चल्लम चल्लम<br />पर्वत जैसी देह थुलथुली थल्लल थल्लल<br />हालर हालर देह हिले जब हाथी चल्लल।