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1 " दर्द के फूल भी खिलते हैं बिखर जाते हैं ज़ख़्म कैसे भी हों कुछ रोज़ में भर जाते हैं र "
― Javed Akhtar , तरकश /ترکش / Tarkash
2 " सब का ख़ुशी से फ़ासला एक क़दम है हर घर में बस एक ही कमरा कम है "
3 " ऊँची इमारतों से मकां मेरा घिर गया कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए "
4 " हमको उठना तो मुँह अँधेरे था लेकिन इक ख़्वाब हमको घेरे था "
5 " न जलने पाते थे जिसके चूल्हे भी हर सवेरे सुना है कल रात से वो बस्ती भी जल रही है मैं "
6 " आओ अब हम इसके भी टुकड़े कर लें ढाका, रावलपिंडी और दिल्ली का चाँद "
7 " अपनी वजहे-बरबादी सुनिये तो मज़े की है ज़िंदगी से यूँ खेले जैसे दूसरे की है "
8 " इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं होठों पे लतीफ़े हैं आवाज़ में छाले हैं "