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" चाय अच्छी-बुरी कहाँ होती है? वो तो पीनेवाले पर निर्भर करता है। कितना दूध, कितनी पत्ती और कितनी देर तक उबाली जाय - इन सबका अपना व्यक्तिगत पैमाना होता है! चाय बनाने के सबके अपने-अपने तरीके भी होते हैं। चाय के शौकीनों को एक-दूसरे की बनाई चाय अच्छी नहीं लगती! बीरेंदर कहता कि जैसे-जैसे लोग ‘बड़े आदमी’ बनते जाते हैं-‘ब्लैक टी’ की तरफ़ बढ़ते जाते हैं। चीनी और दूध दोनों की मात्रा कम करते जाते हैं। ज़्यादा बड़े लोग बिना शक्कर बस ब्लैक ही ‘परेफर’ करते हैं। "

Abhishek Ojha , लेबंटी चाह | Lebanti Chah


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Abhishek Ojha quote : चाय अच्छी-बुरी कहाँ होती है? वो तो पीनेवाले पर निर्भर करता है। कितना दूध, कितनी पत्ती और कितनी देर तक उबाली जाय - इन सबका अपना व्यक्तिगत पैमाना होता है! चाय बनाने के सबके अपने-अपने तरीके भी होते हैं। चाय के शौकीनों को एक-दूसरे की बनाई चाय अच्छी नहीं लगती! बीरेंदर कहता कि जैसे-जैसे लोग ‘बड़े आदमी’ बनते जाते हैं-‘ब्लैक टी’ की तरफ़ बढ़ते जाते हैं। चीनी और दूध दोनों की मात्रा कम करते जाते हैं। ज़्यादा बड़े लोग बिना शक्कर बस ब्लैक ही ‘परेफर’ करते हैं।