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" क्षण-क्षण प्रकटे, दुरे, छिपे फिर-फिर जो चुम्बन लेकर, ले समेट जो निज को प्रिय के क्षुधित अंक में देकर; जो सपने के सदृश बाहु में उड़ी-उड़ी आती हो, और लहर-सी लौट तिमिर में डूब-डूब जाती हो, प्रियतम को रख सके निमज्जित जो अतृप्ति के रस में, पुरुष बड़े सुख से रहता है उस प्रमदा के बस में। "

Ramdhari Singh 'Dinkar' , उर्वशी


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Ramdhari Singh 'Dinkar' quote : क्षण-क्षण प्रकटे, दुरे, छिपे फिर-फिर जो चुम्बन लेकर, ले समेट जो निज को प्रिय के क्षुधित अंक में देकर; जो सपने के सदृश बाहु में उड़ी-उड़ी आती हो, और लहर-सी लौट तिमिर में डूब-डूब जाती हो, प्रियतम को रख सके निमज्जित जो अतृप्ति के रस में, पुरुष बड़े सुख से रहता है उस प्रमदा के बस में।