" जब तक वसंत ऋतु का आगमन नहीं होता, तब तक कोयल मौन रहती है किंतु वसंत के आगमन के साथ ही वह अपनी मधुर वाणी से दसों दिशाओं को गुंजायमान करने लगती है। इस कथन द्वारा चाणक्य ने विद्वानों को अत्यंत गूढ़ परामर्श दिया है। वे कहते हैं कि उचित समय पर ही बुद्धिमान व्यक्ति को उसके अनुकूल कार्य करने चाहिए। "