" सभ्यताओं से संघर्ष की इच्छा शक्ति के अभाव में देश के सारे राजनैतिक दल अप्रासंगिक और गतिहीन हो गए हैं। जनता के आन्दोलन को दिशा देने की क्षमता उनमें नहीं रह गई है। जन-आन्दोलनों का केवल हुंकार होता है, आन्दोलन का मार्ग बन नहीं पाता। जहाँ क्षितिज की कल्पना नहीं है, वहाँ मार्ग कैसे बने? इस कल्पना के अभाव में क्रान्ति अवरुद्ध हो जाती है। "