Home > Author > Rahul Sankrityayan
1 " वह कैसे भविष्यवाणी कर सकती है कि जिस स्वर्ग की हमने आकाश में कल्पना की है, वह उस दिन ढह जाएगा यदि वह किसी तरह यह स्वर्ग बन गया? स्वर्ग में स्वर्ग और अधोलोक में नर्क को स्वर्ग-नरक के आधार पर व्यापार करने के लिए धरती पर स्वर्ग और नर्क की आवश्यकता है। यह आवश्यकता राजा-एंडी और दास-स्वामी के बीच के अंतर से पूरी होती है "
― Rahul Sankrityayan , वोल्गा से गंगा
2 " बहुतों ने पवित्र, निराकार, अभौतिक, प्लेटोनिक प्रेम की बड़ी-बड़ी महिमा गाई है और समझाने की कोशिश की है कि स्त्री-पुरुष का प्रेम सात्विक तल पर ही सीमित रह सकता है। लेकिन यह व्याख्या आत्म-सम्मोहन और परवंचना से अधिक महत्व नहीं रखती। यदि कोई यह कहे कि ऋण और धन विद्युत- तरंग मिलकर प्रज्वलित नहीं होंगे, तो यह मानने की बात है। "
― Rahul Sankrityayan
3 " रूढ़ियों को लोग इसलिए मानते हैं, क्योंकि उनके सामने रूढ़ियों को तोड़ने वालों के उदाहरण पर्याप्त मात्रा में नहीं हैं। "
4 " असल बात तो यह है कि मज़हब तो सिखाता है आपस में बैर रखना। भाई को है सिखाता भाई का खून पीना। हिन्दुस्तानियों की एकता मज़हब के मेल पर नहीं होगी, बल्कि मज़हबों की चिता पर। कौव्वे को धोकर हंस नहीं बनाया जा सकता। कमली धोकर रंग नहीं चढ़ाया जा सकता। मज़हबों की बीमारी स्वाभाविक है। उसकी मौत को छोड़कर इलाज नहीं। "
― Rahul Sankrityayan , तुम्हारी क्षय
5 " हमारे सामने जो मार्ग है उसका कितना ही भाग बीत चुका है, कुछ हमारे सामने है और बहुत अधिक आगे आने वाला है। बीते हुए से हम सहायता लेते हैं, आत्मविश्वास प्राप्त करते हैं, लेकिन बीते की ओर लौटना कोई प्रगति नहीं, प्रतिगति-पीछे लौटना होगा। हम लौट तो सकते नहीं क्योंकि अतीत को वर्तमान बनाना प्रकृति ने हमारे हाथ में नहीं दे रखा है। "
6 " प्रकृति ने कभी मानव पर खुलकर दया नहीं दिखाई, मानव ने उसकी बाधाओं के रहते उस पर विजय प्राप्तस की। "
― Rahul Sankrityayan , ভবঘুরে শাস্ত্র
7 " भिक्षुओ! मैं ऐसा एक भी रूप नहीं देखता, जो पुरुष के मन को इस तरह हर लेता है जैसा कि स्त्री का रूप... स्त्रीं का शब्दी ...स्त्रीे की गंध... स्त्री का रस... स्त्रीा का स्पिर्श...।” इसके बाद उन्हों ने यह भी कहा - “भिक्षुओं! मैं ऐसा एक भी रूप नहीं देखता, जो स्त्री के मन को इस तरह हर लेता है, जैसा कि पुरुष का रूप... पुरुष का "
8 " एको चरे खग्गर विसाण-कप्पोन” (गैंडे के सींग की तरह अकेले विचरे), घुमक्कड़ के सामने तो यही मोटो होना चाहिए। "
9 " என்றைக்காவது, எப்படியாவது இந்த சுவர்கமாக மாறிவிட்டால் அன்றைக்கு நாம் ஆகாயத்தில் கற்பனை செய்து வைத்திருக்கும் சுவர்க்கம் இடிந்து விழுந்துவிடும் என்பதை அவளால் எப்படி ஊகிக்க முடியும் ?ஆகாயத்தில் சுவர்க்கமும் பாதாளத்தில் நரகமும் கற்பனையில் நிரந்தரமாக நீடிக்க, சுவர்க்கம் -நரகம் என்ற அடிப்படையில் வியாபாரம் நடத்த,பூமியில் சுவர்க்கமும் நரகமும் தேவை. அரசன்-ஆண்டி, அடிமை-எஜமான் என்ற வேறுபாடுகளால் இத்தேவை பூர்த்தி செய்யப்படுகிறது "