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1 " क्या यह संभव है कि समय अर्थात अतीत को बीच में लाये बिना बस वर्तमान में जिया जाये? निश्चय ही आप वर्तमान को इसकी पूर्णता में जी सकते हैं, परंतु केवल तभी जब आप समग्र अतीत को समझ लें। समय के प्रति मर जाना वर्तमान में जीना है परंतु समय के प्रति आप तभी मर सकते हैं जब आप अतीत को समझ लें अर्थात स्वयं अपने मन को समझ लें—न सिर्फ उस चेतन मन को जो प्रतिदिन कार्यालय जाता है, जानकारी और अनुभव एकत्र करता रहता है, प्रतिक्रियाएं इत्यादि करता रहता है, बल्कि आपको उस अचेतन मन को भी समझना है जो परिवार, वर्ग व जाति की परंपराओं का संग्रह है। "
― J. Krishnamurti , जीवन और मृत्यु