Home > Work > कुरुक्षेत्र
1 " क्योंकि कोई कर्म है ऐसा नहीं, जो स्वयं ही पुण्य हो या पाप हो। सत्य ही भगवान ने उस दिन कहा, ‘मुख्य है कर्त्ता-हृदय की भावना, "
― Ramdhari Singh 'Dinkar' , कुरुक्षेत्र
2 " जो अखिल कल्याणमय है व्यक्ति तेरे प्राण में, "
3 " न्याय शान्ति का प्रथम न्यास है, "
4 " किसने कहा, पाप है समुचित स्वत्व-प्राप्ति-हित लड़ना? उठा न्याय का खड्ग समर में अभय मारना-मरना? "
5 " सहनशीलता, क्षमा, दया को तभी पूजता जग है, बल का दर्प चमकता उसके पीछे जब जगमग है। "
6 " नर की कीर्त्ति-ध्वजा उस दिन कट गयी देश में जड़ से, नारी ने सुर को टेरा जिस दिन निराश हो नर से। "
7 " ईश जानें, देश का लज्जा विषय तत्त्व है कोई कि केवल आवरण "
8 " जय-सुरा की सनसनी से चेतना निस्पन्द है। "
9 " हर्ष का स्वर जीवितों का व्यंग्य है। "
10 " अब विजय-उपहार भोगो चैन से। "
11 " किन्तु, इस विध्वंस के उपरान्त भी शेष क्या है? व्यंग्य ही तो भाग्य का? चाहता था प्राप्त मैं करना जिसे तत्व वह करगत हुआ या उड़ गया? "
12 " धर्म, स्नेह, दोनों प्यारे थे, बड़ा कठिन निर्णय था, अत:, एक को देह, दूसरे– को दे दिया हृदय था। "
13 " जानता कहीं जो परिणाम महाभारत का, तन-बल छोड़ मैं मनोबल से लड़ता; तप से, सहिष्णुता से, त्याग से सुयोधन को जीत, नयी नींव इतिहास की मैं धरता। "
14 " सबको विनष्ट किया एक अभिमान ने। "
15 " सुलभ हुआ है जो किरीट कुरुवंशियों का, उसमें प्रचण्ड कोई दाहक अनल है; "
16 " विजय कराल नागिनी-सी डँसती है मुझे, "
17 " राजसुख लोहू-भरी कीच का कमल है। "
18 " हाय नर के भाग! क्या कभी तू भी तिमिर के पार "
19 " पर शिराएँ जिस महीरुह की अतल में हैं गड़ी, वह नहीं भयभीत होता क्रूर झंझावात से। "
20 " जानते हैं, युद्ध का परिणाम अन्तिम ध्वंस है! "