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" कुछ दिन झोला लेकर घूम-घाम के आओ तब बुद्धि खुलेगा तुम लोगोंका।[…] बुद्धि रगड़ने से खुलती है। सुख-सुविधा में सुग्गा जैसा पोस के रखने की चीज नहीं है। फिट रखने की चीज है। जैसे व्यायाम से मोटापा नहीं होता वैसे ही रगड़ के इस्तेमाल करने से बुद्धि भी फिट रहती है। "

Abhishek Ojha , लेबंटी चाह | Lebanti Chah


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Abhishek Ojha quote : कुछ दिन झोला लेकर घूम-घाम के आओ तब बुद्धि खुलेगा तुम लोगोंका।[…] बुद्धि रगड़ने से खुलती है। सुख-सुविधा में सुग्गा जैसा पोस के रखने की चीज नहीं है। फिट रखने की चीज है। जैसे व्यायाम से मोटापा नहीं होता वैसे ही रगड़ के इस्तेमाल करने से बुद्धि भी फिट रहती है।