" जब “मैं” का भाव पैदा हो रहा हो तब यदि कोई ध्यानपूर्वक यह देखे कि वह भाव पैदा कहां से हो रहा है, तब मन उसी को देखने में तल्लीन हो जाता है। यह तप है। जब किसी मंत्र का जाप किया जाए और तब यदि पूरा ध्यान उस स्रोत की तरफ़ हो जाए जहां से कि मंत्र की ध्वनि उठ कर आ रही है, तब मन उसे ही सुनने में तल्लीन हो जाता है। यह तप है। "
― Alan Jacobs , Sri Ramana Maharshi (In Hindi): The Supreme Guru