" ईश्वर की क्या कल्पना करता हूँ?’’ वह बोला, ‘‘मैं उसे अज्ञात एक ऐसे विराट्, सृजनात्मक अंग के रूप में देखता हूँ, जो अंतरिक्ष में दसियों लाख संसार बिखेरता है। ठीक वैसे ही जैसे एक अकेली मछली समुद्र में अपने अंडे छोड़ देती है। वह इसलिए सृजन करता है, क्योंकि ईश्वर होने के नाते ऐसा करना उसका कार्य है, लेकिन वह यह नहीं जानता कि वह कर क्या रहा है और वह मूर्खता की हद तक अपने कार्य में उर्वर है तथा उन तमाम किस्मों के मिश्रणों से अनजान रहता है, जो उसके बिखेरे हुए कीटाणुओं से पैदा होते "
― Guy de Maupassant , Maupassan Ki Lokpriya Kahaniyan (Hindi)