" सौ गुने बड़े डर ने मुझे इस समय जकड़ रखा था। मेरा दिल धड़क रहा था और मेरे हाथ-पाँव काँप रहे थे। क्या मैं यहाँ मरने वाला हूँ? मैं मरना नहीं चाहता था। मौत क्यों आए? मौत क्या है? मैं फिर से पूछने और ईश्वर की तरफ मुड़ने ही वाला था कि मैंने अचानक महसूस किया कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए और मैं करूँगा भी नहीं। मुझे उसे पुकारने का कोई अधिकार नहीं है। उसने कहा था कि यह सब जरूरी था और यह सारी गलती सिर्फ मेरी थी। मैंने उससे क्षमा की याचना शुरू कर दी, क्योंकि मैं खुद से चिढ़ा हुआ था। हालाँकि, वह डर अब बहुत देर तक मुझ पर हावी नहीं था। मैं एक पल के लिए रुक गया। मैंने अपना साहस बटोरा और उस दिशा की तरफ बढ़ा, जो कि मुझे ठीक लग रही थी और अब मैं वाकई उस जंगल के बाहर निकल चुका था। जिस जगह मैं अपना रास्ता भटक गया था, वहाँ से बहुत दूर नहीं था। "
― Leo Tolstoy , लियो टॉलस्टॉय की लोकप्रिय कहानियां