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" यह देख, गगन मुझमें लय है,

यह देख, पवन मुझमें लय है,

मुझमें विलीन झंकार सकल,

मुझमें लय है संसार सकल।

अमरत्व फूलता है मुझमें,

संहार झूलता है मुझमें।


'उदयाचल मेरा दीप्त भाल,

भूमंडल वक्षस्थल विशाल,

भुज परिधि-बन्ध को घेरे हैं,

मैनाक-मेरु पग मेरे हैं।

दिपते जो ग्रह नक्षत्र निकर,

सब हैं मेरे मुख के अन्दर।


'दृग हों तो दृश्य अकाण्ड देख,

मुझमें सारा ब्रह्माण्ड देख,

चर-अचर जीव, जग, क्षर-अक्षर,

नश्वर मनुष्य सुरजाति अमर।

शत कोटि सूर्य, शत कोटि चन्द्र,

शत कोटि सरित, सर, सिन्धु मन्द्र।


'शत कोटि विष्णु, ब्रह्मा, महेश,

शत कोटि जिष्णु जलपति, धनेश,

शत कोटि रुद्र, शत कोटि काल,

शत कोटि दण्डधर लोकपाल।

जञ्जीर बढ़ाकर साध इन्हें,

हाँ-हाँ दुर्योधन! बाँध इन्हें।


'भूलोक, अतल, पाताल देख,

गत और अनागत काल देख,

यह देख जगत का आदि-सृजन,

यह देख, महाभारत का रण,

मृतकों से पटी हुई भू है,

पहचान, कहाँ इसमें तू है। "

Ramdhari Singh 'Dinkar' , रश्मिरथी


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Ramdhari Singh 'Dinkar' quote : यह देख, गगन मुझमें लय है,<br /><br /> यह देख, पवन मुझमें लय है,<br /><br />मुझमें विलीन झंकार सकल,<br /><br /> मुझमें लय है संसार सकल।<br /><br />अमरत्व फूलता है मुझमें,<br /><br />संहार झूलता है मुझमें।<br /><br /><br />'उदयाचल मेरा दीप्त भाल,<br /><br /> भूमंडल वक्षस्थल विशाल,<br /><br />भुज परिधि-बन्ध को घेरे हैं,<br /><br /> मैनाक-मेरु पग मेरे हैं।<br /><br />दिपते जो ग्रह नक्षत्र निकर,<br /><br />सब हैं मेरे मुख के अन्दर।<br /><br /><br />'दृग हों तो दृश्य अकाण्ड देख,<br /><br /> मुझमें सारा ब्रह्माण्ड देख,<br /><br />चर-अचर जीव, जग, क्षर-अक्षर,<br /><br /> नश्वर मनुष्य सुरजाति अमर।<br /><br />शत कोटि सूर्य, शत कोटि चन्द्र,<br /><br />शत कोटि सरित, सर, सिन्धु मन्द्र। <br /><br /><br />'शत कोटि विष्णु, ब्रह्मा, महेश,<br /><br /> शत कोटि जिष्णु जलपति, धनेश,<br /><br />शत कोटि रुद्र, शत कोटि काल,<br /><br /> शत कोटि दण्डधर लोकपाल।<br /><br />जञ्जीर बढ़ाकर साध इन्हें,<br /><br />हाँ-हाँ दुर्योधन! बाँध इन्हें।<br /><br /><br />'भूलोक, अतल, पाताल देख,<br /><br /> गत और अनागत काल देख,<br /><br />यह देख जगत का आदि-सृजन,<br /><br /> यह देख, महाभारत का रण,<br /><br />मृतकों से पटी हुई भू है,<br /><br />पहचान, कहाँ इसमें तू है।