" …दुनिया के दो अनजान कोनों के अजनबी भी कैसी अर्थहीन बातों से जुड़ते चले जाते हैं और कभी-कभी सब कुछ एक जैसा होते हुए भी लोग अजनबी ही बने रह जाते हैं। […] उन दोनो के पास बात करने का कोई मुद्दा नहीं होता और जब बात करते तो मुद्दों का कोई अंत भी नहीं होता। जब कुछ बात करने का मन होता तो एक-दूसरे से बात कर लेते और जब बात करने को कुछ भी नहीं होता तो भी एक-दूसरे से बात करने लगते तो बातें ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेतीं। "
― Abhishek Ojha , लेबंटी चाह | Lebanti Chah