" ज़िंदगी में उसे अद्भुत लोग मिले, एक से बढ़कर एक – सोने से खरे। पर वो अधिकतर पढ़े-लिखे, असाधारण, विलक्षण लोग थे। उनसे परे पटना में मिले अजनबी लोग इतने साधारण थे कि… सरलता ही उनकी खूबसूरती थी। ताओवाद के ‘वु वे’ की तरह जिसका अर्थ होता है–कुछ नहीं करना। आनंदमय प्रवाह जिधर ले जाए उधर चलते जाना। […] जो सरलता अनुराग को चाय की दुकान पर हुईं मुलाकातों में देखने को मिली थी वो उसे बड़ी-बड़ी किताबों और पढ़े-लिखे ज्ञानियों में कभी नहीं मिली। "
― Abhishek Ojha , लेबंटी चाह | Lebanti Chah