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" भईया, लोलक समझते हैं? अरे लोलक पेंडुलम को कहते हैं। ज़िन्दगी में बहुत-सी चीज़ें लोलक की तरह ही होती हैं। सुख या दुःख दोनों ही दूर चले गए तो घूम कर फिर वापस आएँगे ही। इंसान को बस अपने काम में मन से लगे रहना चाहिए। हिन्दी में फ़िज़िक्स पढ़ते हुए रटे थे कि दोलन करता हुआ लोलक जितने समय बाद पुनः वापस आ जाए उसे उसका आवर्तकाल कहते हैं। वैसे ही ज़िन्दगी में सुख-दुःख का भी आवर्तकाल होता है। "

Abhishek Ojha , लेबंटी चाह | Lebanti Chah


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Abhishek Ojha quote : भईया, लोलक समझते हैं? अरे लोलक पेंडुलम को कहते हैं। ज़िन्दगी में बहुत-सी चीज़ें लोलक की तरह ही होती हैं। सुख या दुःख दोनों ही दूर चले गए तो घूम कर फिर वापस आएँगे ही। इंसान को बस अपने काम में मन से लगे रहना चाहिए। हिन्दी में फ़िज़िक्स पढ़ते हुए रटे थे कि दोलन करता हुआ लोलक जितने समय बाद पुनः वापस आ जाए उसे उसका आवर्तकाल कहते हैं। वैसे ही ज़िन्दगी में सुख-दुःख का भी आवर्तकाल होता है।