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" मन में सहसा बड़ी-बड़ी अभिलाषाएँ उदित हुईं और गम्भीर आकाश के शून्य में ताराओं के समान डूबी गईं। वह चुप बैठी रही। "

जयशंकर प्रसाद , कंकाल


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जयशंकर प्रसाद quote : मन में सहसा बड़ी-बड़ी अभिलाषाएँ उदित हुईं और गम्भीर आकाश के शून्य में ताराओं के समान डूबी गईं। वह चुप बैठी रही।