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" हिंसा धर्म तब बनती है, जब वह आत्मरक्षार्थ या दुर्जनों का विनाश करने के लिए की गई हो। इस बेचारे गूँगे प्राणी ने तुम्हें कौन-सा कष्ट दिया था? उसने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था? कौन-सा कुकर्म किया था?’’ ‘‘उस पंछी के रंगों पर मैं बहुत ही मोहित हो गया।’’ ‘‘बड़े रसिक जान पड़ते हो! लेकिन यह न भूलो कि जिसने तुम्हें यह रसिकता दी है, उसी ने इस पंछी को जान भी दी है। "

Vishnu Sakharam Khandekar , Yayati: A Classic Tale of Lust


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Vishnu Sakharam Khandekar quote : हिंसा धर्म तब बनती है, जब वह आत्मरक्षार्थ या दुर्जनों का विनाश करने के लिए की गई हो। इस बेचारे गूँगे प्राणी ने तुम्हें कौन-सा कष्ट दिया था? उसने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था? कौन-सा कुकर्म किया था?’’ ‘‘उस पंछी के रंगों पर मैं बहुत ही मोहित हो गया।’’ ‘‘बड़े रसिक जान पड़ते हो! लेकिन यह न भूलो कि जिसने तुम्हें यह रसिकता दी है, उसी ने इस पंछी को जान भी दी है।