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" फल बाहर से नहीं आते हैं, फल भीतर पैदा होते हैं। हम जो करते हैं, उसी की रिसेप्टिविटी हमारे भीतर विकसित हो जाती है। जो प्रेम चाहता है, प्रेम को फैला दे। और जो आनंद चाहता है, वह आनंद को लुटा दे। और जो चाहता है, उसके घर पर फूलों की वर्षा हो जाए, वह दूसरों के आंगनों में फूल फेंक दे। और कोई रास्ता नहीं है। तो करुणा का एक भाव प्रत्येक को विकसित करना जरूरी है साधना में प्रवेश के लिए। तीसरी बात है, प्रमुदिता, उत्फुल्लता, प्रसन्नता, आनंद का एक बोध, विषाद का अभाव। हम सब विषाद से भरे हैं। हम सब उदास लोग, थके लोग हैं। हम सब हारे हुए, पराजित, रास्तों पर चलते हैं और समाप्त हो जाते हैं। हम ऐसे चलते हैं, जैसे आज ही मर गए हैं। हमारे चलने में कोई गति और प्राण नहीं है। हमारे उठने-बैठने में कोई प्राण नहीं है। हम सुस्त हैं, और उदास हैं, और टूटे हुए हैं, और हारे हुए हैं। यह गलत है। जीवन कितना ही छोटा हो, मौत कितनी ही निश्चित हो, जिसमें थोड़ी समझ है, वह उदास नहीं होगा। "

Osho , Dhyan Sutra


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Osho quote : फल बाहर से नहीं आते हैं, फल भीतर पैदा होते हैं। हम जो करते हैं, उसी की रिसेप्टिविटी हमारे भीतर विकसित हो जाती है। जो प्रेम चाहता है, प्रेम को फैला दे। और जो आनंद चाहता है, वह आनंद को लुटा दे। और जो चाहता है, उसके घर पर फूलों की वर्षा हो जाए, वह दूसरों के आंगनों में फूल फेंक दे। और कोई रास्ता नहीं है। तो करुणा का एक भाव प्रत्येक को विकसित करना जरूरी है साधना में प्रवेश के लिए। तीसरी बात है, प्रमुदिता, उत्फुल्लता, प्रसन्नता, आनंद का एक बोध, विषाद का अभाव। हम सब विषाद से भरे हैं। हम सब उदास लोग, थके लोग हैं। हम सब हारे हुए, पराजित, रास्तों पर चलते हैं और समाप्त हो जाते हैं। हम ऐसे चलते हैं, जैसे आज ही मर गए हैं। हमारे चलने में कोई गति और प्राण नहीं है। हमारे उठने-बैठने में कोई प्राण नहीं है। हम सुस्त हैं, और उदास हैं, और टूटे हुए हैं, और हारे हुए हैं। यह गलत है। जीवन कितना ही छोटा हो, मौत कितनी ही निश्चित हो, जिसमें थोड़ी समझ है, वह उदास नहीं होगा।