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" प्रेम… एक पुवाल की आग की तरह और दूसरा गोईंठे की आग की तरह। जितनी एक की मियाद होती है, दूसरे का तो उतने समय के बाद अंकुर ही फूटता है। तुम्हें कैसे समझाऊँ पर ऐसा है कि एक पुवाल की आग है। भभक कर जलता है। एकदम आसानी से। उसके बाद कुछ नहीं बचता–राख भी नहीं। दूसरा गोईंठा की आग है। देर से जलता है। धुआँ होता है। धीरे-धीरे सुलगता है पर आग ऐसी जो रात भर रह जाती है। "

Abhishek Ojha , लेबंटी चाह | Lebanti Chah


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Abhishek Ojha quote : प्रेम… एक पुवाल की आग की तरह और दूसरा गोईंठे की आग की तरह। जितनी एक की मियाद होती है, दूसरे का तो उतने समय के बाद अंकुर ही फूटता है। तुम्हें कैसे समझाऊँ पर ऐसा है कि एक पुवाल की आग है। भभक कर जलता है। एकदम आसानी से। उसके बाद कुछ नहीं बचता–राख भी नहीं। दूसरा गोईंठा की आग है। देर से जलता है। धुआँ होता है। धीरे-धीरे सुलगता है पर आग ऐसी जो रात भर रह जाती है।