" समुद्र में तैरने का आनंद जी भर कर लेना हो तो किनारा छोड़कर गहरे पानी में काफी दूर भीतर जाना पड़ता है। कभी बारी-बारी से लहरों का आलिंगन मिलता है तो कभी उनके थपेड़े भी खाने पड़ते हैं! पल-पल प्रतिक्षण नमकीन चुंबनाें की मिठास चखनी पड़ती है, नीले पानी पर तैरते रहकर दूर दिखाई देने वाले नीले क्षितिज को अपनी बाँहों में भरने की चेष्टा करनी पड़ती है, मौत के मुँह में हँसते-हँसते सागर के अमर गीता का साथ देना पड़ता है! प्रीत की रीत भी ऐसी ही है। "
― Vishnu Sakharam Khandekar , Yayati: A Classic Tale of Lust